
रामलीला उत्सव को गरिमापूर्ण ढंग से आयोजित करने हेतु आज दिल्ली की रामलीला समितियों ने की अहम मीटिंग दिल्ली में बनेगा रामायण शोध संस्थान- इस बार राम जन्म के साथ सीता जन्म का भी होगा मंचन सांसद खंडेलवाल ने कहा रामलीला हमारी संस्कृति की धरोहर
आगामी रामलीला उत्सव को भव्य, व्यवस्थित एवं बिना किसी प्रशासनिक अड़चनों के संपन्न कराने हेतु आज दिल्ली के रामलीला संगठनों के मुख्य संगठन श्री रामलीला महासंघ ने कंस्टीट्यूशन क्लब में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई। इस बैठक में चांदनी चौक से सांसद श्री प्रवीन खंडेलवाल विशेष रूप से शामिल हुए जबकि दिल्ली सरकार, एमसीडी, डीडीए, दिल्ली पुलिस, बिजली विभाग, जल बोर्ड सहित 18 संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।मीटिंग की अध्यक्षता महासंघ के अध्यक्ष श्री अर्जुन कुमार ने की तथा संचालन श्री सुभाष गोयल ने किया।दिल्ली की विभिन्न रामलेलाओं के 200 के लगभग प्रतिनिधि मौजूद थे। इस मीटिंग में देश के प्रमुख कथावाचक एवं संत अजय भाई जी भी उपस्थित रहे ।
इस अवसर पर सांसद श्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की प्रभु श्री राम भारतवासियों के आराध्यदेव हैं और उनका जीवन हर व्यक्ति को मर्यादा, पुरुषार्थ और लक्ष्य के प्रति समर्पण का बड़ा संदेश देता है जिसे आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पूर्ण रूप से निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामलीला हमारे धर्म, संस्कृति और विरासत का प्रतीक है और यह आवश्यक है की रामलीला उत्सव को प्रत्येक स्तर पर प्रोत्साहित किया जाये और ऐसे पावन आयोजन में बाधा डालने वाली कोई भी प्रशासनिक जटिलता को समय रहते दूर किया जाये।स् इस दृष्टि से रामलीला समितियों तथा सभी संबंधित विभाग परस्पर समन्वय के साथ काम करते हुए समय पर सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराएं ताकि रामलीला उत्सव पूरी गरिमा और श्रद्धा के साथ संपन्न हो सके।
*श्री अजय भाई जी ने सुझाव दिया कि दिल्ली में एक रामायण शोध संस्थान स्थापित किया जाए जिसमें प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लगातार शोध होता रहे वहीं उन्होंने यह भी आग्रह किया कि इस बार रामलीलाओं में राम जन्म के साथ सीता जन्म का भी मंचन हो। दोनों प्रस्तावों को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। इस बार रामलीलाओं में भारत की सेनाओं के शौर्य एवं वीरता की झांकियां भी होंगी । रामलीलाओं के आयोजन को लेकर विभिन्न सरकारी विभागों के साथ समन्वय करने हेतु श्री अर्जुन कुमार के नेतृत्व में एक 11 सदायीय समिति का भी गठन किया गया*
एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में छोटी बड़ी लगभग 500 से अधिक रामलीलाएँ होती हैं जिनमें सभी बड़ी रामलीलाएँ मुख्य रूप से चाँदनी चौक लोकसभा क्षेत्र में आयोजित की जाती हैं । इस वर्ष रामलीला उत्सव 22 सितंबर 2025 सें 3अक्तूबर 2025 तक चलेगा तथा दिल्ली सहित देश भर में दशहरा 2 अक्तूबर को मनाया जाएगा।
बैठक में रामलीला समितियों के पदाधिकारियों द्वारा निम्न प्रमुख मुद्दे उठाए गए:
मैदानों का समय से आवंटन:
डीडीए और एमसीडी को रामलीला आयोजनों के लिए मैदान कम से कम 45 दिन पूर्व उपलब्ध कराना चाहिए। ये मैदान बिना शुल्क के दिए जाएं क्योंकि यह एक पावन धार्मिक उत्सव है।
सफाई और सुरक्षा व्यवस्था:
मैदानों की नियमित सफाई, कीटनाशक छिड़काव, और आयोजन से पूर्व मैदान का ठीक ढंग से समतलीकरण सुनिश्चित किया जाए।
झूला ऑपरेटरों की मनमानी पर रोक:
कई बार देखा गया है कि कुछ झूला ऑपरेटर अफसरों की मिलीभगत से मैदान पहले ही बुक कर लेते हैं और बाद में रामलीला आयोजकों से मनमाना पैसा वसूलते हैं। इस पर सख्त रोक लगाई जाए।
बिजली और पानी की व्यवस्था:
रामलीला के लिए बिजली निःशुल्क या घरेलू दरों पर उपलब्ध कराई जाए, न कि वाणिज्यिक दरों पर।
दिल्ली जल बोर्ड को आमजन हेतु निःशुल्क पेयजल की सुविधा देनी चाहिए।
लाइसेंस और अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC):
दिल्ली पुलिस को रामलीला के लाइसेंस हेतु पूर्व सूचना जारी करनी चाहिए ताकि समय पर प्रक्रिया पूर्ण हो सके।
विभिन्न विभागों से आवश्यक NOC के लिए एक “सिंगल विंडो सिस्टम” स्थापित किया जाए जिससे समितियों को भागदौड़ न करनी पड़े।
यातायात और प्रचार व्यवस्था:
रामलीला स्थलों पर यातायात सुचारु रखने के लिए विशेष ट्रैफिक प्लान बनाया जाए।
एमसीडी को रामलीला के प्रचार के लिए बोर्ड्स और बिलबोर्ड्स की अनुमति प्रदान करनी चाहिए।इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य समस्याओं का भी जिक्र किया गया
*श्री खंडेलवाल ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों से आग्रह किया की इस वर्ष दिल्ली में रामलीला मंचन में कोई असुविधा न हो, इस बात के प्रयास अभी से शुरू किए जाएं। इस हेतु एक सरल एसओपी बनाई जाए जिसका पालन सभी रामलीला समितियां करें वहीं सभी रामलीला आयोजक भी ग्राउंड के अंदर अपनी ओर से सुरक्षा, सफाई एवं अन्य व्यवस्थाएं संबंधित सरकारी विभाग के साथ तालमेल बनाते हुए करें।उन्होंने कहा कि आज की मीटिंग के फ़ॉलो अप के लिए अगले माह इसी प्रकार की मीटिंग की जाएगी जिससे इस आयोजन को पूरी दिल्ली भव्यता, दिव्यता एवं आस्था के साथ इस वर्ष बिना किसी व्यवधान के मनाया जा सके*
*रामलीला का इतिहास*
दिल्ली में रामलीला का इतिहास काफी लंबा और समृद्ध है। यह दशहरा के त्योहार के दौरान रामायण के महाकाव्य के प्रदर्शन का एक रूप है, जिसमें गीत, संवाद और नृत्य शामिल होते हैं. दिल्ली में रामलीला की शुरुआत पुरानी दिल्ली के सीताराम बाज़ार से शुरू हुई जो उसके बाद एक लंबे काल से रामलीला मैदान में हुई और अब दिल्ली के सभी क्षेत्रों में रामलीला का आयोजन होता है।
राजधानी दिल्ली में रामलीला के साथ मेलों के आयोजन के सदियों पुराने इतिहास पर नजर डालें तो यह अड़चनें पहले भी कई बार आ चुकी हैं। हर बार जीत राम-भक्तों की हुई है। औरंगजेब ने जब रामलीला पर बंदिश लगा दी थी तो उसके उत्तराधिकारियों को कर्ज देकर दिल्ली में रामलीला शुरू कराई गई थी। कई पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में कई साल तक पुरानी दिल्ली का सीताराम बाजार रामलीला का केंद्र रहा। यहाँ लोग दूर-दूर से आकर रामलीला का आनंद लेते थे।
औरंगजेब ने अपने शासन काल में दिल्ली में रामलीला का आयोजन रुकवा दिया था। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई। इसके बाद 1719 ई. में दिल्ली की गद्दी पर मुहम्मद शाह रंगीला (1702-1748) बैठा। उस समय तक शाही खजाना खाली हो चुका था।
बादशाह रंगीला ने लाला सीताराम से सरकारी खजाने के लिए कर्जे के रूप में मदद माँगी। लाला सीताराम ने भी कर्ज देने के बदले सीताराम बाजार स्थित अपनी हवेली में रामलीला के आयोजन की अनुमति माँग ली। मुहम्मद शाह रंगीला ने इसकी मंजूरी दे दी। इसके बाद सीताराम बाजार में कई वर्षों तक रामलीला का आयोजन होता रहा।
18 वीं शताब्दी में शाह आलम द्वितीय की सेना में शामिल हिंदू सैनिकों ने रामलीला के आयोजन की अनुमति शाही दरबार से माँग ली। इसके बाद रामलीला का आयोजन एक बार फिर लाल किला के पीछे यमुना के किनारे होने लगा। बीच में कुछ व्यवधान जरूर आए पर आज भी राजधानी में रामलीला का आयोजन बृहद स्तर पर होता है।
रामलीला के मंचन के दौरान खाने-पीने की चीजों की दुकानें भी लगती थीं। शुरू में मूँगफली, रेवड़ी, भुने हुए चने, शकरकंद और मोतीचूर के लड्डू खूब बिकते थे। दूर-दूर से लोग खेतों में पैदा होने वाली चीजें और हाथ से बनाई चीजें बेचने के लिए रामलीला के मेले का इंतजार करते थे।
रामलीला का प्रमुख केंद्र पुरानी दिल्ली ही रहा है। अतः यहाँ की मशहूर खाने-पीने की चीजें भी धीरे-धीरे इन मेलों में शामिल होती चली गईं।
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