
नेशनल कॉन्क्लेव में क्विक कॉमर्स और ई-कॉमर्स की काली सच्चाई उजागर, स्वतंत्र नियामक संस्था की उठी मांग
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में आज आयोजित *“क्विक कॉमर्स और ई-कॉमर्स का क्रूर चेहरा”* विषयक राष्ट्रीय कॉन्क्लेव में **कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन (एमरा), ऑल इंडिया कंज़्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (आईसीपीडीएफ) और ऑर्गनाइज़्ड रिटेलर्स एसोसिएशन (ओरा)** के साथ मिलकर विदेशी फंड से संचालित ई-कॉमर्स कंपनियों और तथाकथित भारतीय क्विक कॉमर्स प्लेटफार्मों के बेलगाम, अनैतिक और कानून-विरोधी कार्यप्रणालियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी खतरे की घंटी बजाई।
सम्मेलन में सर्वसम्मति से कहा गया कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता – पारंपरिक खुदरा व्यापार – आज उन कंपनियों के निशाने पर है जो खुलेआम कानूनों का उल्लंघन कर रही हैं, बाजार को विकृत कर रही हैं और छोटे व्यापारियों को योजनाबद्ध तरीके से बर्बाद कर रही हैं।
*“जब हर गली-हर नुक्कड़ पर दुकानें हैं, तो 10 मिनट की डिलीवरी की क्या ज़रूरत?”*
यह तीखा सवाल *कैट के राष्ट्रीय महामंत्री और चांदनी चौक से सांसद श्री प्रवीन खंडेलवाल* ने उठाया। उन्होंने एफडीआई के दुरुपयोग और उपभोक्ताओं की गणित आधारित मानसिकता से हो रही छेड़छाड़ पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ये कंपनियाँ भारत को “केले गणराज्य” समझती हैं जहाँ कानूनों की कोई अहमियत नहीं है।
*“बुनियादी ढांचा खड़ा करने की बजाय, एफडीआई का इस्तेमाल घाटा भरने, छोटे दुकानदारों को खत्म करने और पूरी आपूर्ति श्रृंखला पर कब्ज़ा करने के लिए किया जा रहा है,” उन्होंने कहा। “यह अब व्यापार नहीं रहा—यह वैल्यूएशन की दौड़ है, जिसमें भारतीय खुदरा व्यापारी कुचले जा रहे हैं।”**
**कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी. भरतिया** ने घोषणा की कि 1 मई 2025 से पूरे देश में एक निर्णायक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया जाएगा, जिसमें हर राज्य और शहर की व्यापारिक संस्थाएं हिस्सा लेंगी। इस आंदोलन की रणनीति 25–26 अप्रैल को भुवनेश्वर में आयोजित कैट की नेशनल गवर्निंग काउंसिल मीटिंग में घोषित की जाएगी।
**क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म: एक छिपा हुआ हमला आईसीपीडीएफ के अध्यक्ष श्री धैर्यशील पाटिल** ने बताया कि ज़ेप्तो, बलिंकित और इंस्टामार्ट जैसे प्लेटफॉर्म ने ₹54,000 करोड़ से अधिक का एफडीआई प्राप्त किया है, जिसमें से मात्र 2.5% ही बुनियादी ढांचे पर खर्च हुआ है। शेष राशि का प्रयोग घाटा भरने, पसंदीदा विक्रेताओं को सब्सिडी देने और एक बंद इकोसिस्टम तैयार करने में किया गया है, जिससे स्वतंत्र व्यापारी बाहर हो गए हैं और उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी, “ये मार्केटप्लेस नहीं हैं—ये इन्वेंट्री आधारित कंपनियां हैं जो नकाब पहनकर काम कर रही हैं।”
विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियाँ: पुरानी चाल, नई मार
*एमरा के अध्यक्ष श्री कैलाश लाखियानी** ने अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि ये कंपनियाँ पिछले एक दशक से भारत के कानूनी ढांचे में छेद कर खुदरा प्रणाली को तहस-नहस कर रही हैं। उन्होंने बताया कि ये कंपनियाँ समूह कंपनियों और पसंदीदा विक्रेताओं के ज़रिए एफडीआई नियमों को दरकिनार कर आपूर्ति श्रृंखला पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर रही हैं। स्वतंत्र विक्रेताओं से भारी-भरकम कमीशन वसूला जाता है, जबकि पसंदीदा विक्रेताओं को वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स और डिलीवरी जैसी सुविधाएं लगभग मुफ्त मिलती हैं।
**क्लोजिंग रेज़ोल्यूशन: सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग**
कॉन्क्लेव के समापन पर सर्वसम्मति से एक सशक्त नीति प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें निम्नलिखित मांगें की गईं:
• एफडीआई और ई-कॉमर्स नीतियों का तत्काल और सख्त प्रवर्तन एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ई-कॉमर्स नियमों को तुरंत लागू किया जाए।
• ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स द्वारा किए जा रहे इन्वेंट्री-आधारित संचालन पर पूर्ण प्रतिबंध लगे, यदि वे स्वयं को मार्केटप्लेस बताते हैं।
• डिजिटल कॉमर्स के लिए एक स्वतंत्र और सक्षम नियामक संस्था का गठन किया जाए।
• प्लेटफार्मों के एल्गोरिद्म, मूल्य निर्धारण और विक्रेता चयन में पूर्ण पारदर्शिता अनिवार्य की जाए।
• छोटे किराना दुकानों और ऑफलाइन व्यापार को संरक्षण और प्रोत्साहन मिले।
• ई-कॉमर्स प्लेटफार्म से वस्तुओं की खरीद पर जीएसटी के अंतर्गत लग्ज़री टैक्स लगाया जाए।
• क्विक कॉमर्स और ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को रोका जाए।
• डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय की जाए।
• बैंकों को यह निर्देश दिया जाए कि वे क्रेडिट कार्ड कैशबैक ऑफर में ई-कॉमर्स और छोटे दुकानदारों के बीच भेदभाव न करें।
सम्मेलन का मत था कि यदि अब निर्णायक कदम नहीं उठाए गए, तो भारतीय खुदरा व्यवस्था की जड़ें डिजिटल एकाधिकारियों के हाथों खोखली हो जाएंगी।
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- Acharya Chanakya once said, ‘When peace becomes impossible through all means, only then should the path of war be adopted. But when you wage war, do it in such a way that the enemy can never rise again.’ Today, Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modi has validated this very thought through his address to the nation.
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